सोमवार, 3 मई 2010

क़साब को सज़ा

26/11 और अजमल आमिर कसाब ये तारीख और नाम शायद ही हिन्दुस्तान का कोई भी शख्स ताउम्र भूल पाएगा। जिसने सैकड़ों मासूमों को मौत की नींद सुला दिया। कितनी मांओं की गोद उजाड़ दिया, कितनों को विधवा बना दिया कितने बच्चों को अनाथ कर दिया और न जाने कितनों की ज़िंदगी सूनी कर दिया था इस दिन इस क़ातिल दरिंदे इंसान अजमल आमिर क़साब ने..शुक्र है आज उसे अदालत ने दोषी करार दिया है..लेकिन सच तो ये है कि जब तक उसे फांसी की सज़ा ना मिल जाए और जब तक मौत की आग़ोश में ना सो जाए तब तक उन लोगों के दिल को सुकून नहीं मिलेगा जिन लोगों ने अपनों को 26/11 के हमले में खोया है..लेकिन आज हर किसी के मन में यही बात आ रही है कि उसे ऐसी मौत मिले जो उसके लिए मौत से भी बदतर हो..लेकिन अदालत का फैसला आने के बाद से ही लोगों ने कई सवाल भी खड़े करने शुरु कर दिए..सवाल नंबर एक क्यों कसाब को भारत में हमले के बाद भी दामाद बनाकर रखा पुलिस ने...क्यों क़ातिल इंसान कसाब पर करोड़ों रुपए सरकार ने खर्च किए...क्यों कसाब को इतने दिन ज़िंदा रखा गया..ऐसे कई सवाल हैं जो वाक़ई जज़बाती तौर पर कहने को सही है..लेकिन वक्तिगत तौर पर यही कहूंगा कि कसाब को ज़िंदा रखकर उसकी जांच पड़ताल कर दोषी करार देकर सज़ा देना ही सही है..आज सरकार के पास ना जाने कितनी जानकारियां मिली होंगी उनकी किस तरह की गतिविधियां होती हैं किस तरह प्लान कर मकसद को अंजाम देते हैं..क्या उनकी रणनीतियां होती हैं नेटवर्क कहां कितना बड़ा है सब पता चला होगा जो आगे कि दुर्घटनाओं से दो चार होने के लिए सहायक होंगी...क़ामयाबी कसाब को उसी वक्त मार देने में नहीं थी बल्कि कामयाबी उसे ज़िंदा पकड़ सबक के तौर पर कड़ी सज़ा देने में है ताकि दुनियां के सामने इस घिनोने इंसान का सारा सच सामने आने पर एक पैग़ाम भी मिले और फिर कोई कसाब पैदा ना हो सके...

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