गुरुवार, 23 सितंबर 2010

राम का दूसरा वनवास

राम बनवास से जब लौटके घर में आये

याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये

रक़्सेदीवानगी आँगन में जो देखा होगा

छह दिसंबर को श्रीराम ने सोचा होगा

इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये


जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशां

प्यार की कहकशां लेती थी अँगडाई जहाँ

मोड़ नफ़रत के उसी राहगुज़र से आये


धर्म क्या उनका है क्या ज़ात है यह जानता कौन

घर न जलता तो उन्हें रात मे पहचानता कौन

घर जलाने को मेरा लोग जो घर में आये


शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा ख़ंजर

तुमने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर

है मेरे सर की ख़ता ज़ख़्म जो सर में आये


पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे

कि नज़र आये वहाँ ख़ून के गहरे धब्बे

पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे

राजधानी की फ़िज़ा आयी नहीं रास मुझे

छह दिसंबर को मिला दूसरा बनवास मुझे !

रचनाकार- कैफी आज़मी

शनिवार, 28 अगस्त 2010

मंहगाई डायन खाए जात है...



वक़्दा तुशाई करता हूं, माज़ी और हाल में


जितने में गोश्त मिलता था, अब लगता है दाल में।


पोशाक का ग़ुमान तो, मंहगा है इसक़दर


जितने में ढकते थे तन, लगता है रूमाल में।


गल्ला के भाव-ताव में, नेता ने कह दिया


ये योजना अभी बनेगी, अभी पांच साल में।


भाई-भाई का दुश्मन है, कैसे हैं ये सलूक


होता नहीं शरीक कोई इंतकाल में।


ऐ हिंद अपनी उर्दू को दूं इस लिए मिटा


उत्तर मिलेगा आपको, हर हर सवाल मे।

सोमवार, 3 मई 2010

क़साब को सज़ा

26/11 और अजमल आमिर कसाब ये तारीख और नाम शायद ही हिन्दुस्तान का कोई भी शख्स ताउम्र भूल पाएगा। जिसने सैकड़ों मासूमों को मौत की नींद सुला दिया। कितनी मांओं की गोद उजाड़ दिया, कितनों को विधवा बना दिया कितने बच्चों को अनाथ कर दिया और न जाने कितनों की ज़िंदगी सूनी कर दिया था इस दिन इस क़ातिल दरिंदे इंसान अजमल आमिर क़साब ने..शुक्र है आज उसे अदालत ने दोषी करार दिया है..लेकिन सच तो ये है कि जब तक उसे फांसी की सज़ा ना मिल जाए और जब तक मौत की आग़ोश में ना सो जाए तब तक उन लोगों के दिल को सुकून नहीं मिलेगा जिन लोगों ने अपनों को 26/11 के हमले में खोया है..लेकिन आज हर किसी के मन में यही बात आ रही है कि उसे ऐसी मौत मिले जो उसके लिए मौत से भी बदतर हो..लेकिन अदालत का फैसला आने के बाद से ही लोगों ने कई सवाल भी खड़े करने शुरु कर दिए..सवाल नंबर एक क्यों कसाब को भारत में हमले के बाद भी दामाद बनाकर रखा पुलिस ने...क्यों क़ातिल इंसान कसाब पर करोड़ों रुपए सरकार ने खर्च किए...क्यों कसाब को इतने दिन ज़िंदा रखा गया..ऐसे कई सवाल हैं जो वाक़ई जज़बाती तौर पर कहने को सही है..लेकिन वक्तिगत तौर पर यही कहूंगा कि कसाब को ज़िंदा रखकर उसकी जांच पड़ताल कर दोषी करार देकर सज़ा देना ही सही है..आज सरकार के पास ना जाने कितनी जानकारियां मिली होंगी उनकी किस तरह की गतिविधियां होती हैं किस तरह प्लान कर मकसद को अंजाम देते हैं..क्या उनकी रणनीतियां होती हैं नेटवर्क कहां कितना बड़ा है सब पता चला होगा जो आगे कि दुर्घटनाओं से दो चार होने के लिए सहायक होंगी...क़ामयाबी कसाब को उसी वक्त मार देने में नहीं थी बल्कि कामयाबी उसे ज़िंदा पकड़ सबक के तौर पर कड़ी सज़ा देने में है ताकि दुनियां के सामने इस घिनोने इंसान का सारा सच सामने आने पर एक पैग़ाम भी मिले और फिर कोई कसाब पैदा ना हो सके...

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

शाहरूख बनाम शिवसेना

शाहरूख बनाम शिवसेना-
आज कैफ़ी आज़मी साहब का लिखा ये गीत याद आ रहा है॥ “इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चल के ये देश है तुम्हारा नेता तुम्हीं हो कल के.. ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के..”मगर आजकल के नेता कितने इंसाफ की राह पर चल रहे हैं आप देख रहे हैं और समझ भी रहे हैं..इसकी हाल में हुई मुंबई की घटना शाहरूख बनाम शिवसेना..ताज़ा मिसाल हैं...शाहरूख का सिर्फ एक बयान जो पाकिस्तानी खिलाड़ियों के फेवर में बोलना..जैसे पूरी मुंबई में आग लग गई हो..जिसके पीछे या ये कहें कि पूरे मामले में जो कुछ हुआ या हो रहा है राजनैतिक रूप से, संवैधानिक रूप से और सामाजिक रूप से दूध औऱ पानी की तरह हर किसी को साफ नज़र आ रहा है...यही नहीं इस घटना ने कई सवाल भी खड़े किए हैं...जिसका जवाब भी हमारे आपके पास है...ऐसा नहीं कि शिवसेना या मनसे ये कोई मुंबई में नया तांडव कर रहे हैं॥ गर च दिमाग़ पर थोड़ा सा बल दें तो सारी घटनाएं आपके ज़हनों में मल्टीप्लेक्स के बड़े पर्दे की तरह आपके मन के थियेटर में पूरी फिल्म दिखने लगेगी॥चाहे मामला मुंबई में अबुआसिम आज़मी के हिंदी में शपथ ग्रहण लेते वक्त उनपर मनसे का थप्पड़ मारने का हो या उत्तर भारतियों को लगातार परेशान करने का या उनको ऑस्ट्रेलिया की तर्ज़ पर क्षेत्रवाद के नाम पर मारने का...आए दिन ये उपद्रवी देश के असमाजिक तत्व इस तरह का हंगामा करते रहते हैं...ये मज़हब की राजनीति तो करते हैं लेकिन पाकिस्तान के पूर्व खिलाड़ी जावेद मियांदाद को बक़ायदा दावत देते हैं...भाषा के नाम पर शपथ ग्रहण नहीं लेने देते लेकिन हिंदी भी बोलते हैं...शिवसेना पार्टी की इकाई का उत्तर भारत में गठन करते हैं लेकिन उत्तर भारतियों मुंबई से बाहर भगाने से भी नहीं गुरेज़ करते..वहीं केंद्र सरकार का बात करें...तो ये क्या हुई बात भई...ये आपकी दोगली राजनीति का फंडा कुछ हज़म नहीं हुआ...केंद्र में विराजमान सत्ता पार्टी यानी कांग्रेस की..यानी कांग्रेस एलाईंस की...बिल्कुल तमाशबीन बनी है॥भई समझ रहे हैं आपकी मजबूरी 5 साल की पूरी सरकार जो चलानी है...होने दो जो होता है क्या मतलब हमसे...लोग आपस में कटते मरते हैं तो क्या फर्क पड़ता है॥हर किसी की सरकार के वक्त तो ऐसा होता है...हुआ है..आपके कांग्रेस युवराज राहुल मोहरे के मुंबई विज़िट की चाल भी खूब समझ में आ रही है...पहले भी तो आपके शासनकाल में ऐसा होता था फिर तब क्यों नहीं...बक़ायदा चैलेंज कर के आप शिवसेना की गुफा में चल निकले॥प्रशासन इतनी मुसतैद की कोई परिंदा पर भी नहीं मार सका...आपकी ये गतिविधियां आपकी ये चाल यक़ीनी तौर पर किसी पंच वर्षीय गुज़ारन योजना कि तरफ इशारा करती है॥मतलब कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे...जैसे बक़ायदा पहले ही स्क्रिप्ट लिख रखी हो...उनके मुताबिक कभी देश की मासूम जनता को बाहरी आतंकवाद के नाम पर...कभी क्षेत्रवाद के नाम पर॥कभी भाषा के नाम पर और कभी मंदिर तो मस्जिद के नाम पर और कभी कुछ ना मुद्दा मिले तो घरेलू आतंकवाद के नाम पर जनता को बहलाना-फुसलाना हैं॥इसके साथ ही जब चुनाव क़रीब आ जाए...तो गुज़रे वक़्त में घटित घटनाओं को मुद्दा बनाकर वोटबैंक राजनीति करना है...ऐसे में कैफ़ी आज़मी के लिखे गीत का क्या मतलब, देश के संविधान का क्या मतलब॥आए दिन न्यायालय को फटकार तक लगाना पड़ता है, क्या मतलब...या ये कहें कि जो देश के महापुरूषों नें, जो देश के आम बहादुर सिपाहियों ने जान की क़ुरबानियां दीं, जिन्होंने आज़ाद भारत का सुनहरे भारत का सपना देखा था उसका क्या मतलब...

बुधवार, 20 जनवरी 2010

शान-ए-हिंद ए आर रहमान

पहले स्लम डॉग और अब 'कपल्स रिट्रीट' हलाकि ये पूरी तरह हॉलीवुड फिल्म है। लेकिन इस फिल्म के एक गाने ‘ना ना’ के लिए एक बार फिर से ए आर रहमन के गाने को ऑस्कर एवॉर्ड के लिए 6२ दूसरे चुने हुए गाने में शामिल किया गया है। इससे पहले पिछले साल फिल्म स्लम डॉग मिलिनियर के लिए ए आर रहमान को ऑस्कर एवॉर्ड मिल चुका है। रहमान अपनी दोहरी क़ामयाबी से काफी खुश हैं। हालाकि इस गाने को अभी 6२ गानों से मुकाबला करना बाक़ी है। इस गाने को 'बेस्ट ऑरिजिनल सॉन्ग' की श्रेणी में रखा गया है। एवॉर्ड का ऐलान 2 फरवरी को किया जाएगा। रहमान अपने गाने को ऑस्कर में चुने जाने पर हैरान भी हैं...उन्होंने इम मसले पर कहा.. “ मुझे नहीं मालूम इस गाने को नामांकन मिलेगा या नहीं क्योंकि हमने इस गाने का कोई प्रचार तो किया नहीं है।” एक अलग सोच औऱ बेजोड़ हुनर रखने वाले रहमान को हमेशा ही अलग करने की चाहत ने एक बार फिर ऑस्कर की दहलीज़ पर ला खड़ा किया है। ये फिल्म भले ही हॉलीवुड की है लेकिन इसमे कारनामा तो भारतीय म्यूज़िक शहंशाह ए आऱ रहमान ने ही किया है। कहीं ना कहीं भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सर ऊंचा करने का मौक़ा तो दिया है। जिसपर की हम सभी भारतीयों को भी गर्व है। ऐसे में ए आर रहमान के लिए एक ही शेर मेरे ज़हन में आता है जो बहुत पहले अल्लमा इक़बाल ने लिखा था कि...
''हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती रही,
बड़ी मुश्किल से होता है दीदार ए.आर रहमान दयारे चमन में''