शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

शाहरूख बनाम शिवसेना

शाहरूख बनाम शिवसेना-
आज कैफ़ी आज़मी साहब का लिखा ये गीत याद आ रहा है॥ “इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चल के ये देश है तुम्हारा नेता तुम्हीं हो कल के.. ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के..”मगर आजकल के नेता कितने इंसाफ की राह पर चल रहे हैं आप देख रहे हैं और समझ भी रहे हैं..इसकी हाल में हुई मुंबई की घटना शाहरूख बनाम शिवसेना..ताज़ा मिसाल हैं...शाहरूख का सिर्फ एक बयान जो पाकिस्तानी खिलाड़ियों के फेवर में बोलना..जैसे पूरी मुंबई में आग लग गई हो..जिसके पीछे या ये कहें कि पूरे मामले में जो कुछ हुआ या हो रहा है राजनैतिक रूप से, संवैधानिक रूप से और सामाजिक रूप से दूध औऱ पानी की तरह हर किसी को साफ नज़र आ रहा है...यही नहीं इस घटना ने कई सवाल भी खड़े किए हैं...जिसका जवाब भी हमारे आपके पास है...ऐसा नहीं कि शिवसेना या मनसे ये कोई मुंबई में नया तांडव कर रहे हैं॥ गर च दिमाग़ पर थोड़ा सा बल दें तो सारी घटनाएं आपके ज़हनों में मल्टीप्लेक्स के बड़े पर्दे की तरह आपके मन के थियेटर में पूरी फिल्म दिखने लगेगी॥चाहे मामला मुंबई में अबुआसिम आज़मी के हिंदी में शपथ ग्रहण लेते वक्त उनपर मनसे का थप्पड़ मारने का हो या उत्तर भारतियों को लगातार परेशान करने का या उनको ऑस्ट्रेलिया की तर्ज़ पर क्षेत्रवाद के नाम पर मारने का...आए दिन ये उपद्रवी देश के असमाजिक तत्व इस तरह का हंगामा करते रहते हैं...ये मज़हब की राजनीति तो करते हैं लेकिन पाकिस्तान के पूर्व खिलाड़ी जावेद मियांदाद को बक़ायदा दावत देते हैं...भाषा के नाम पर शपथ ग्रहण नहीं लेने देते लेकिन हिंदी भी बोलते हैं...शिवसेना पार्टी की इकाई का उत्तर भारत में गठन करते हैं लेकिन उत्तर भारतियों मुंबई से बाहर भगाने से भी नहीं गुरेज़ करते..वहीं केंद्र सरकार का बात करें...तो ये क्या हुई बात भई...ये आपकी दोगली राजनीति का फंडा कुछ हज़म नहीं हुआ...केंद्र में विराजमान सत्ता पार्टी यानी कांग्रेस की..यानी कांग्रेस एलाईंस की...बिल्कुल तमाशबीन बनी है॥भई समझ रहे हैं आपकी मजबूरी 5 साल की पूरी सरकार जो चलानी है...होने दो जो होता है क्या मतलब हमसे...लोग आपस में कटते मरते हैं तो क्या फर्क पड़ता है॥हर किसी की सरकार के वक्त तो ऐसा होता है...हुआ है..आपके कांग्रेस युवराज राहुल मोहरे के मुंबई विज़िट की चाल भी खूब समझ में आ रही है...पहले भी तो आपके शासनकाल में ऐसा होता था फिर तब क्यों नहीं...बक़ायदा चैलेंज कर के आप शिवसेना की गुफा में चल निकले॥प्रशासन इतनी मुसतैद की कोई परिंदा पर भी नहीं मार सका...आपकी ये गतिविधियां आपकी ये चाल यक़ीनी तौर पर किसी पंच वर्षीय गुज़ारन योजना कि तरफ इशारा करती है॥मतलब कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे...जैसे बक़ायदा पहले ही स्क्रिप्ट लिख रखी हो...उनके मुताबिक कभी देश की मासूम जनता को बाहरी आतंकवाद के नाम पर...कभी क्षेत्रवाद के नाम पर॥कभी भाषा के नाम पर और कभी मंदिर तो मस्जिद के नाम पर और कभी कुछ ना मुद्दा मिले तो घरेलू आतंकवाद के नाम पर जनता को बहलाना-फुसलाना हैं॥इसके साथ ही जब चुनाव क़रीब आ जाए...तो गुज़रे वक़्त में घटित घटनाओं को मुद्दा बनाकर वोटबैंक राजनीति करना है...ऐसे में कैफ़ी आज़मी के लिखे गीत का क्या मतलब, देश के संविधान का क्या मतलब॥आए दिन न्यायालय को फटकार तक लगाना पड़ता है, क्या मतलब...या ये कहें कि जो देश के महापुरूषों नें, जो देश के आम बहादुर सिपाहियों ने जान की क़ुरबानियां दीं, जिन्होंने आज़ाद भारत का सुनहरे भारत का सपना देखा था उसका क्या मतलब...

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